अविनाश तिवारी
Tuesday, 1 January 2013
दिल्ली 16 दिसंबर
मानवता खो गई ......अजीब सी बैचैनी है इस आबोहवा में .सुख सिमट गया है व्यक्तिवादिता के मायाजाल में . कौशल्या के राम नहीं मिलते , सत्जन नत मस्तक है . आजाद मुल्क अपने ही दर्द से तड़प उठा है .......सपने धूमिल है.........
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